द्वन्द्व

आज फिर मैं मौन हूँ।

दुविधा और संकल्प का रण।
क्रोध है पर नेह का प्रण।
आनन्द भी, अवसाद भी।
संदेह भी, विश्वास भी।
प्रीति के इन क्षणों में द्वन्द्व से बेचैन हूँ।
आज फिर मैं मौन हूँ।

१३ जनवरी १९९९
बंगलौर