मेरी अज़ीज़ ग़ज़लें

गुलाम अली




जगजीत सिंह




गुलाम अली


हंगामा है क्यों बरपा -- अकबर अल्लाहबादी


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=ay6TgQ-8b3c]
हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है

उस मय से नहीं मतलब दिल जिससे हो बेगाना
मकसूद है उस मय से दिल ही में जो खिंचती है

सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हमको कहें काफ़िर अल्लाह की मरज़ी है

ना तजुर्बाकारी से वाइज़ की ये बातें है
इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है

हर ज़र्रा चमकता है अनवर-ए-इलाही से
हर सांस ये कहती है हम है तो खुदा भी है

[Top]

इतनी मुद्दत बाद मिले हो


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=qzSuC3UrWlE]
इतनी मुद्दत बाद मिले हो
किन सोचों में गुम रहते हो?

तेज हवा ने मुझसे पूछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो?

कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यों लगते हो?

हमसे न पूछो हिज्र के किस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो?

[Top]

चुपके चुपके रात दिन -- हसन कमल


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=SZCGW4v-0fE]
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिकी का वो ज़माना याद है

खैंच लेना वो मेरा परदे का कोना दफ्फातन
और दुपट्टे से तेरा वो मुंह छुपाना याद है

तुझ से मिलते ही वो कुछ बेबाक हो जाना मेरा
और तेरा दांतों में वो उंगली दबाना याद है

चोरी-चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुजरीं पर अब तक वो ठिकाना याद है

तुझ को जब तनहा कभी पाना तो अज राह-ऐ-लिहाज़
हाल-ऐ-दिल बातों ही बातों में जताना याद है

दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तेरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है

गैर की नज़रों से बचकर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़
वो तेरा चोरी छिपे रातों को आना याद है

बा हजारां इस्तिराब-ओ-सद-हजारां इश्तियाक
तुझसे वो पहले पहल दिल का लगाना याद है

बेरुखी के साथ सुनना दर्द-ए-दिल की दास्तां
वो कलाई में तेरा कंगन घुमाना याद है

वक्त-ए-रुखसत अलविदा का लफ्ज़ कहने के लिए
वो तेरे सूखे लबों का थरथराना याद है

आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फिराक
वो तेरा रो-रो के भी मुझको रुलाना याद है

[Top]

मस्ताना पिये जा यूँ ही मस्ताना पिये जा


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=zNOdgC12Evk]
मस्ताना पिये जा यूँ ही मस्ताना पिये जा
पैमाना क्या चीज़ है मयखाना पिये जा

कर गर्क-ऐ-मौजां गम-ऐ-गर्दिश-ऐ-अय्याम
हाँ ऐ दिल-ऐ-नाकाम हकीमाना पिये जा

मयनोशी के आदाब से आगाह नहीं तू
जिस तरह कहे साकी-ऐ-मैखाना पिये जा

इस मक्र की बस्ती में है मस्ती ही से हस्ती
दीवाना बन और बा-दिल-ऐ-दीवाना पिये जा

मैखाने के हंगामे हैं कुछ देर के मेहमां
है सुबह-ओ-करीब अख्तर-ऐ-दीवाना पिए जा

[Top]

भुला भी दे उसे जो बात हो गयी प्यारे


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=d4JgCD7r65s]

भुला भी दे उसे जो बात हो गयी प्यारे
नये चराग़ जला रात हो गयी प्यारे

तेरी निगाह-ए-पशेमाँ को कैसे देखूँगा
कभी जो तुझसे मुलाक़ात हो गई प्यारे

न तेरी याद, न दुनिया का ग़म, न अपना ख़याल
अजीब सूरत-ए-हालात हो गई प्यारे

उदास-उदास हैं शमाएं, बुझे-बुझे सागर
ये कैसी शाम-ए-ख़राबात हो गयी प्यारे

वफ़ा का नाम न लेगा कोई जमाने में
हम अहल-ए-दिल को अगर मात हो गयी प्यारे

कभी-कभी तेरी यादों की साँवली रुत में
बहे जो अश्क तो बरसात हो गई प्यारे

तुम्हे तो नाज़ बहुत दोस्तों पे था "जालिब"
अलग-थलग से हो क्या बात हो गयी प्यारे

हबीब जालिब

[Top]

बहारों को चमन याद आ गया है


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=FvD5piS1vvs]
बहारों को चमन याद आ गया है
मुझे वो गुलबदन याद आ गया है

लचकती शाख ने जब सर उठाया
किसी का बांकपन याद आ गया है

तेरी सूरत को जब देखा है मैंने
उरूज-ऐ-फिक्र-ओ-फन याद आ गया है

मेरी ख़ामोशी पे हंसने वालों
मुझे वो कम सुखन याद आ गया है

मिले वो अजनबी बन कर तो `रफअत'
ज़माने का चलन याद आ गया है

[Top]

दिल में इक लहर सी उठी है अभी -- नासिर काज़मी


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=RvoNEOcRmZk]
दिल में इक लहर सी उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी

शोर बरपा है ख़ाना-ए-दिल में
कोई दीवार सी गिरी है अभी

कुछ तो नाज़ुक मिज़ाज हैं हम भी
और ये चोट भी नयी है अभी

भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी

सो गये लोग उस हवेली के
एक खिड़की मगर खुली है अभी

तू शरीक-ए-सुख़न नहीं है तो क्या
हम-सुख़न तेरी ख़ामोशी है अभी

याद के बेनिशां जज़ीरों से
तेरी आवाज़ आ रही है अभी

शहर की बेचिराग़ गलियों में
ज़िन्दगी तुझको ढूँढती है अभी

तुम तो यारो अभी से उठ बैठे
शहर में रात जागती है अभी

वक़्त अच्छा भी आयेगा 'नासिर'
ग़म न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी

[Top]

वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए -- अख्तर शीरानी


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=HRq3IrQmtB8]
वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
रात दिन सूरत को देखा कीजिए

चाँदनी रातों में इक-इक फूल को
बेख़ुदी कहती है सजदा कीजिए

जो तमन्ना बर न आए उम्र भर
उम्र भर उस की तमन्ना कीजिए

इश्क़ की रंगीनियों में डूब कर
चाँदनी रातों में रोया कीजिए

पूछ बैठे हैं हमारा हाल वो
बेख़ुदी तू ही बता क्या कीजिए

हम ही उसके इश्क़ के क़ाबिल न थे
क्यूँ किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए

आप ही ने दर्द-ए-दिल बख़्शा हमें
आप ही इस का मुदावा कीजिए

कहते हैं 'अख़्तर' वो सुन कर मेरे शेर
इस तरह हमको न रुसवा कीजिए

[Top]

हमको किसके गम ने मारा, ये कहानी फिर सही -- मसरूर अनवर


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=-8iLrn_xJFg]

[youtube https://www.youtube.com/watch?v=vpHpiiPmdRI]

हमको किसके गम ने मारा, ये कहानी फिर सही
किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फिर सही

दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने
नाम आएगा तुम्हारा, ये कहानी फिर सही

नफरतों के तीर खा कर, दोस्तों के शहर में
हमने किस किस को पुकारा, ये कहानी फिर सही

क्या बताएं प्यार की बाजी, वफ़ा की राह में
कौन जीता कौन हारा, ये कहानी फिर सही

[Top]

कैसी चली है अब के हवा तेरे शहर में -- खातिर गज़नवी


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=vdLShXeRFC0]
कैसी चली है अब के हवा तेरे शहर में
बन्दे भी हो गये हैं ख़ुदा तेरे शहर में

क्या जाने क्या हुआ कि परेशान हो गए
इक लहज़ा रुक गयी थी सबा तेरे शहर में

कुछ दुश्मनी का ढब है न अब दोस्ती के तौर
दोनों का एक रंग हुआ तेरे शहर में

शायद उन्हें पता था कि 'ख़ातिर' है अजनबी
लोगों ने उसको लूट लिया तेरे शहर में

[Top]

ये दिल ये पागल दिल मेरा क्यों बुझ गया आवारगी


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=Jf5LOSnbkNg]
ये दिल ये पागल दिल मेरा क्यों बुझ गया आवारगी
इस दश्त में इक शहर था वो क्या हुआ आवारगी

कल शब मुझे बेशक्ल की आवाज़ ने चौंका दिया
मैंने कहा तू कौन है उसने कहा आवारगी

ये दर्द की तन्हाईयाँ ये दश्त का वीरां सफर
हम लोग तो उकता गए अपनी सुना आवारगी

लोगो भला उस शहर में कैसे जियेगें हम
जहाँ हो जुर्म तनहा सोचना लेकिन सजा आवारगी

इक अजनबी झोंके ने जब पूछा मेरे गम का सबब
सहरा की भीगी रेत पर मैंने लिखा आवारगी

कल रात तनहा चाँद को देखा था मैंने ख्वाब में
`मोहसिन' मुझ ये रास आएगी शायद सदा आवारगी

[Top]

आप हैं क्यों ख़फ़ा, कुछ पता तो चले


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=ofwN377Qknc]
आप हैं क्यों ख़फ़ा, कुछ पता तो चले
है मेरी क्या खता, कुछ पता तो चले

आज चेहरे पे रंग-ए-उदासी क्यूँ
ऐ मेरे दिलरुबा कुछ पता तो चले

आपके और मेरे प्यार के दरमियाँ
क्यों है यह फासिला कुछ पता तो चले

मैं अगर बेवफा हूँ तो यूँ ही सही
कौन है बावफा कुछ पता तो चले

[Top]

मैं कुछ सोच रहा हूँ -- अब्दुल हमीद अदम


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=JpZ3E14WJEw]
खाली है अभी जाम, मैं कुछ सोच रहा हूँ
ऐ गर्दिश-ए-अय्याम, मैं कुछ सोच रहा हूँ

साक़ी तुझे इक थोड़ी सी तकलीफ तो होगी
सागर को जरा थाम, मैं कुछ सोच रहा हूँ

पहले बड़ी रग़बत थी तेरे नाम से मुझको
अब सुनके तेरा नाम, मैं कुछ सोच रहा हूँ

इदराक अभी पूरा तआवुन नहीं करता
दे बादा-ए-गुल्फ़ाम, मैं कुछ सोच रहा हूँ

हल कुछ तो निकल आएगा हालात की ज़िद का
ऐ कसरत-ए-आलाम, मैं कुछ सोच रहा हूँ

फिर आज ‘अदम’ शाम से ग़मगीन है तबीयत
फिर आज सरे शाम मैं कुछ सोच रहा हूँ

[Top]

ज़ख्म-ए-तन्हाई में खुश्बू-ए-हिना किसकी थी -- मुज़फ्फर वारसी


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=1ekI__BIN6I]
ज़ख्म-ए-तन्हाई में खुश्बू-ए-हिना किसकी थी
साया दिवार पे मेरा था सदा किसकी थी

आंसुओं से ही सही भर गया दामन मेरा
हाथ तो मैंने उठाये थे दुआ किसकी थी

मेरी आहों की ज़बां कोई समझता कैसे
ज़िंदगी इतनी दुखी मेरे सिवा किसकी थी

उसकी रफ़्तार से लिपटी रहती मेरी आँखें
उसने मुड़ कर भी ना देखा कि वफ़ा किसकी थी

वक्त की तरह दबे पाँव ये कौन आया
मैं अँधेरा जिसे समझा वो काबा किसकी थी

आग से दोस्ती उसकी थी जला घर मेरा
दी गयी किसको सजा और खता किसकी थी

मैंने बिनाइयां बो कर भी अँधेरे काटे
किसके बस में थी ज़मीं अब्र-ओ-हवा किसकी थी

छोड़ दी किसके लिए तूने 'मुज़फ्फर' दुनिया
जुस्तजू सी तुझे हर वक्त बता किसकी थी

[Top]

ग़म है या खुशी है तू -- नासिर काज़मी


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=sJyaLPzdWAY]
ग़म है या खुशी है तू
मेरी ज़िन्दगी है तू

आफतों के दौर में
चैन की घड़ी है तू

मेरी रात का चिराग
मेरी नींद भी है तू

मैं खिज़ां की शाम हूँ
रूत बहार की है तू

दोस्तों के दरमियाँ
वजह दोस्ती है तू

मेरी सारी उम्र में
एक ही कमी है तू

मैं तो वो नहीं रहा
हाँ, मगर वो ही है तू

'नासिर' इस दयार में
कितना अजनबी है तू

[Top]

ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं


Audio Stream

ऐ दर्द-ए-हिज्र-ए-यार ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं
बे-मौसम-ए-बहार ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं

मेरे बयान-ए-ग़म का तसलसुल न टूट जाये
ग़ेसू ज़रा सँवार ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं

राज़-ओ-नयाज़-ए-इश्क़ में क्या दख़्ल है तेरा
हट फ़िक़्र-ए-रोज़गार ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं

साक़ी बयान-ए-शौक़ में रंगीनियाँ भी हों
ला जाम-ए-ख़ुश-गवार ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं

तुझसा सुखन-शनास कोई दूसरा नहीं
सुन ऐ ख़याल-ए-यार ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं

[Top]

जगजीत सिंह


अपनी आँखों के समंदर में


[youtube http://www.youtube.com/watch?v=YmILO2qlMQI]
अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे।
तेरा मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे।

ऐ नए दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे।

आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी
कोई आँसू मेरे दामन पर बिखर जाने दे।

ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको
सोचता हूँ कि कहूँ तुझसे, मगर जाने दे।

[Top]