स्वप्न

मैनें देखा एक स्वप्न, विदा दे रजनी को अति भोर।

संचित कर शक्ति अपार,
लघु कोमल पंख पसार,
छोड़ चला क्षिति छोर,
उङा मन नूतन नभ की ओर।
मैनें देखा एक स्वप्न, विदा दे रजनी को अति भोर॥

मन में भावों की अकुलन,
ओठों पे शब्दों के बंधन,
नव तरंग, आनंद, उमंग,
विह्वल हो नाचे मन – मोर।
मैनें देखा एक स्वप्न, विदा दे रजनी को अति भोर॥

नभ की चादर, चांद खिलौना,
उड़ता बादल बना बिछौना,
अनुपम अनुभव, नहीं असंभव,
यदि मन में निश्चय घनघोर।
मैनें देखा एक स्वप्न, विदा दे रजनी को अति भोर॥

१६ फरवरी १९९४
I.I.T. कानपुर