मंथन

सुधापान की चाह प्रबल पर,
मन-मंथन ने जना हलाहल।
जगती-सुत वैभव पर विस्मित,
कौन पिये शिव भांति गरल?

शुभ्र मुकुट-मणि महिमा मंडित,
हरि-पद-कवच बनेगा कौन?
देव-देव पूजे जग सारा,
दीनों पर ध्यान धरेगा कौन?

उत्तुंग शिखर करने को चुंबित,
दृढ़-मन हिम-पथ जाये कौन?
अतल, गहन, गंभीर सिंधु के
उर से मोती लाये कौन?

महाप्रलय तांडव नर्तन में
डमरू लय बन जाये कौन?
मेघों के रथ पर तम गर्वित,
प्रखर आदित्य आज क्यों मौन?

१७ फरवरी १९९४
नवाबगंज, कानपुर