कुंठ सर्ग - भाग ४ - सत्य? रण है द्वार आया?

[सैरंध्री कौरवों के आक्रमण और राजकुमार उत्तर के सारथि के बिना युद्ध करने की असमर्थता का समाचार बृहन्नला को देती है।]

“सत्य? रण है द्वार आया?”

स्पष्ट था कि बृहन्नला भी
स्तब्धजो जड़ या अचल हो गया हो, विस्मितआश्चर्य-चकित सुन कथानक;
कौरवों से युद्ध उसको
आ मिलेगा यों अचानक।

कल्पना के चरम पर भी
खेल मन ऐसे न खेला —
सकलसमस्त, सारी कौरव सैन्य बल से
भिड़ रहा है वह अकेला।

मालिनीद्रौपदी का अज्ञातवास में नाम के मंजुसुंदर, मनोहर मुख से
मादनमादक, मदन या कामदेव, धतूरा समाचार आया। ॥१॥

हर्ष छलका अंग से हर,
छिप रहा था ना छिपाये।
फूटकर उसके हृदय से
जीभ पर उद्गार आये,

“स्वप्न चिरबहुत समय से, हमेशा जो देखता था,
त्वरिततेजी से वह साकार होगा!
कामना की वल्लरीलता का
बृहदवृहत्, बहुत बड़ा यह आकार होगा!

शमितशमित करना: शांत करना मेरी तृषाप्यास, अभिलाषा, इच्छा करने
मेघ मूसलधारमूसल के समान मोटी धारा वाला आया! ॥२॥

“जानती! कल रात को ही
अग्नि में मैं जल रहा था।
प्रार्थना शीतल निशा से
दग्ध स्वर में कर रहा था —

“कुंठ का मैं शाप भूलूँ,
मुक्ति की वह नींद दे दो;
या निकालूँ रोष अपना
दान में वह युद्ध दे दो।

“माँगता था चैन तिल-भर,
विपुलबहुत ज्यादा, बहुत बड़ा सुख-अंबारढेर, राशि आया। ॥३॥

“है सही अनुमान, पहुँची
सूचना यह कौरवों तक —
मार डाला है किसी ने
मल्लकुश्ती, बिना किसी हथियार के केवल शारीरिक बल से लड़ा जाने वाला युद्ध में बलवान कीचक।

“जान दुर्योधन-हृदय में
कौंध आयी छवि उसी क्षण,
भीम ही है कर सके जो
कृत्यकाम यह दु:साध्यजिसको साधना / करना कठिन हो भीषण।

“ढूँढता था साल भर से,
भनक पा इस बार आया। ॥४॥

“हो न हो, शंका यही थी
धर्मराज को भी कदाचितशायद,
यह न गोपनछिपी रह सकेगी,
बात फैलेगी सुनिश्चित।

“हो गया आभास उनको,
छोड़ मुझको योजना से,
अगर हमला हो यहॉं तो
मैं सँभालूँ पीठ पीछे।

अभिज्ञकिसी बात या विषय का ज्ञान रखनेवाला जानकार हैं वे, सत्य संशय,
युद्ध यह अनिवारअनिवार्य, आवश्यक, जरूरी आया। ॥५॥

“कोई भी पंचांग चुन लो
सूर्य-चंद्र वर्ष जो भी,
विधि किसी भी जोड़ देखो
मान लो अधिमासअधिकमास, मलमास, दो संक्रांतियों के मध्य में होने वाला चंद्र-मास को भी,

“अज्ञातवास-अवधि पूरी,
सावधानी-वश छिपे हम,
ताकि हर गणना नियम से
फिर छले ना जा सकें हम।

“थी बहुत पीड़ा पुरानी,
अंत में उपचार आया। ॥६॥

“जा कहो सुभगेसुभगा: भाग्यशाली, सुन्दर, सुख देने वाली, पति को प्रिय वहाँ तुम —
यदि कमी बस सारथि की,
ज्ञात एक रहस्य तुमको,
सब सुनें यह बात हित की;

“पांडवों का सेवक रहा,
बहुत कुशल बृहन्नला है;
पार्थ-सारथि रह चुका है,
मानता इसकी कला है;

“जाइए सारथि उसे ले,
युद्ध का झंझारआग की ऊंची लपट, ज्वाला आया।” ॥७॥