पंछी

प्राची की लाली पे निकले, साँझ ढले हैं लौटे पंछी।
दिन भर के श्रम से थक कर, नीड़ सलोने लौटे पंछी॥

चहक-चहक चिपटे हैं बच्चे, सारे दिन की कथा सुनाते,
दिन शायद अब शुरू हुआ है, गले लटक कर झूले पंछी॥

बड़े अनोखे काज करूँगा, आसमान पे राज करूँगा,
वो जग था या ये जग है, आ रैन-बसेरे सोचे पंछी॥

प्रेम-पगे प्रियतम से बंध, परिणति में संसार सजा,
अब भव-सागर में अपनी नैया, धीरे-धीरे खेवे पंछी॥

कल गोदी में आश्रय था, आज नन्हें कदम बढ़ाते हैं,
गगन नापने कल जायेंगे, कितनी जल्दी बढ़ते पंछी॥

सुख है दुःख है, चहल-पहल है, जीवन का उद्योग सफल है,
अनुभव और स्मृतियों को बुन, चुन-चुन रोज संजोते पंछी॥

विशु (१४ अप्रैल) २०१६
बंगलौर