लेखनी तुम न हो उदास

कविता शोणित का तप्त सिंधु,
संवेदना का केंद्र बिंदु,
नर की भुजा का दर्प-दंभ,
प्रेयसी का अप्रतिम हास!
लेखनी तुम न हो उदास।

कविता कभी काया की कथा,
कहती है मन की आर्त्त व्यथा,
वह देश-काल का दर्पण सजग,
मानव कुल का विस्तार-ह्रास!
लेखनी तुम न हो उदास।

कविता मही का रूप-रंग,
जलधि ऊर्मियों की उमंग,
सूरज का दग्ध दिव्य रोष,
प्रचण्ड पवन का उच्छ्वास!
लेखनी तुम न हो उदास।

कविता तृण का जीवन-मरण,
गिरि-सागर का बनना-विघटन,
महाद्वीपों का घर्षण सतत,
प्रारब्ध का आद्यंत इतिहास!
लेखनी तुम न हो उदास।

४ सितंबर २०१६
बंगलौर