आओ मिल कर गधा बनाएँ

अटल जी की एक कविता है: आओ फिर से दिया जलाएँ। मेरा एक अरसे से मन था कि लिखूँ कि अगर आज के राजनेता कविता लिखते तो क्या लिखते।

आओ मिल कर गधा बनाएँ!

बापू की, नेहरू - पटेल की,
सुभाष औ' आजाद-भगत की,
सबकी जन्म-पुण्य तिथि पर
प्रतिमा को माला पहनाएँ!
आओ मिल कर गधा बनाएँ!

जन्मभूमि यदि होती माता,
आजादी पर क्यों था बाँटा?
फिर टुकड़े कर, लड़ा-भिड़ा कर,
राजनीति का धंधा चमकाएँ!
आओ मिल कर गधा बनाएँ!

उमर हवेली की हो कितनी?
सब कहते बस साठ साल ही!
मूरख हैं वो, जुगत लगा हम
राज कुंवर को चँवर डुलाएँ!
आओ मिल कर गधा बनाएँ!

सपनों और वादों का क्या है?
इन पर न चुंगी-कर लगता है।
कहा कुछ और करते कुछ हैं,
उलट-पलट का हुनर दिखाएँ!
आओ मिल कर गधा बनाएँ!

शासक और शासन बदलेंगे,
बस कहने को ढोंग सुहाने,
सत्ता को पा केंचुली उतरी,
पर जनता को टोपी पहनाएँ!
आओ मिल कर गधा बनाएँ!

१० जुलाई २०१६
बंगलौर