रसना में नहि रस रहा, रसिक से रूठा रास।
माया जोड़ी जतन से, अब मुक्ती की आस॥
मरघट की माया मुरी, मुरदा दे उपदेश।
जी भर जीना सीख ले, कफन में कुछ न शेष॥
४ दिसंबर २०१५
बंगलौर
रसना में नहि रस रहा, रसिक से रूठा रास।
माया जोड़ी जतन से, अब मुक्ती की आस॥
मरघट की माया मुरी, मुरदा दे उपदेश।
जी भर जीना सीख ले, कफन में कुछ न शेष॥
४ दिसंबर २०१५
बंगलौर