धीरे-धीरे जाग रहा हूँ

कड़ी धूप में सारा दिन तप,
श्रम निरत, संधानों में खप,
प्रतिफल में निशिता पाने पर,
खिन्न, अंध गह्वर में छिपकर,
अंतस के अंधियारे से क्यों भाग रहा हूँ?
धीरे-धीरे जाग रहा हूँ।

इच्छा और अपेक्षा कारण;
समझा दुख का मूल निवारण।
शांत मन हो धूनी रमाकर,
बैठा तुंग शिला के ऊपर,
अंतरतम के अंधियारे को त्याग रहा हूँ।
धीरे-धीरे जाग रहा हूँ।

१० दिसंबर २०१४
बंगलौर