प्रेम - गुंजन

प्रेम - गुंजन तिमिर में सांझ से ढलते नहीं।
हर कदम पे साथ चलकर लोग यूं मुड़ते नहीं।

मन है कोमल, बात ऐसी ओठों पे आ जाये न,
अनजाने कहीं संवेदना को ठेस यूं लग जाये न,
और फिर हम उम्र भर अफसोस ही करते रहें,
स्नेह का सागर हो मन में, आँखों से गंगा बहे।
एक बार निकले जो शब्द, लौटते तो हैं नहीं।
प्रेम - गुंजन तिमिर में सांझ से ढलते नहीं॥

प्रेम हो उद्दाम तो आखिर है इसमें क्या गलत?
चाहता हो मन कि हर पल साथ हो तुम, क्या गलत?
क्यों दो पल को मिल कर उम्र भर की प्यास लूं?
क्यों न बढ कर मैं तुम्हारा हाथ बोलो थाम लूं?
दुनिया के दस्तूर मन को बांध सकते हैं नहीं।
प्रेम - गुंजन तिमिर में सांझ से ढलते नहीं॥

स्नेह के स्निग्ध स्वर में प्रीति के दो बोल मीठे,
उंगलियों का स्पर्श सुमधुर, मिलन के वो क्षण अनूठे,
ओठों का कंपन नशीला, नजरों का मिलना - अटकना,
बाहों में आते हुये संकोच से क्षण भर ठिठकना।
सांसों का संगीत हो, ये स्वप्न हैं, क्यों सच नहीं?
प्रेम - गुंजन तिमिर में सांझ से ढलते नहीं॥

अगस्त २०००
Milwaukee, WI, USA