पड़ाव

जानता हूँ कि सूरज डूबने वाला है।
चारो तरफ खामोशी है।
चंद लम्हों में रात का अंधेरा
हर तरफ पसर जायेगा।
और मुझको ठहरना होगा,
रात के बीतने तक।

मेरी आँखें नम क्यों हैं?
क्यों लगता है कि वक्त कुछ धीमें चलता?
कि राहें कुछ और लंबी होतीं?
ये राहों का आकर्षण है या पङाव का सन्नाटा?
ये जिंदगी का मोह है या मौत का डर?
इस उलझन में जीना होगा,
यह राज जानने तक।

मैं उदास हूँ, पर निराश नहीं हूँ।
क्योंकि मैं ये जानता हूँ
कि कल फिर सुबह होगी,
सूरज फिर उगेगा,
हवा फिर गुनगुनायेगी।
मैं फिर निकल पडूगाँ,
और चलता रहूँगा सफर के अगले पड़ाव तक।

ये सिलसिला चलता रहेगा यूं ही,
मेरे मंजिल पे पहुँचने तक।

मार्च १९९८
Lowell, MA, USA

[ Merrimack नदी के किनारे जिंदगी का एक पड़ाव। ]