जीवन सरिता बहती जाये

(छोटे भाई-बहन से क्षमा-याचना)

बचपन की यादों की पोटल,
बांधे जिसमें सुख-दु:ख के पल,
जीवन की इस उठा-पटक में,
बनीं हुयी जो मेरा संबल,
खोली जब आकुल हो मैंने, अँसुअन से नैना भर आये।
जीवन सरिता बहती जाये।

स्मृतियों के मोती अनगिन,
ममता से बढ, कौन है लेकिन ?
पाल-पोस कर बङा करे माँ,
सच है नहीं उतरता ये ऋण।
पर कैसा दुर्भाग्य है अपना, माँ को कुछ भी दे न पाये।
जीवन सरिता बहती जाये।

कैसी है यह विधि की माया,
जो मुझको यूं क्रूर बनाया।
ममता के आँचल का अमृत,
सचमुच मैनें कम ही पाया।
वरना क्यों कोमल कलियों को, मैनें विष के दंश चुभाये?
जीवन सरिता बहती जाये।

पीछे छूटी बचपन की झांकी,
बस यादों की राख है बांकी।
मन में जो एक बात है अटकी,
कह देता हूँ तुमसे ताकि,
कुछ तो कम संताप हो मेरा, मन कुछ तो हल्का हो जाये।
जीवन सरिता बहती जाये।

सच है तुमको दु:ख देता था,
लेकिन सोचो मैं भी छोटा था।
कैसी परिस्थितियाँ थीं बोलो,
किन हालत में पला-बढा था।
गलती थी मेरे छुटपन की, क्षमा मांगता आँख झुकाये।
जीवन सरिता बहती जाये।

ओ मेरे भइया और बहना,
सच मानोगे मेरा कहना?
तुम दोनों हो बहुत ही प्यारे,
तुम दोनों हो मेरा गहना।
इसके आगे और कहूँ क्या, मुझको कुछ भी समझ न आये।
जीवन सरिता बहती जाये।

६ अक्टूबर १९९६
नई दिल्ली