ये खता न हो

कोई रूह है मेरी ग़ज़ल की, पर नाम लूँ, ये खता न हो।
जो ख्वाब हैं, बड़े हसीन हैं, उन्हें लफ्ज़ दूँ, ये खता न हो।

कहीं जाम हैं, कहीं जख्म हैं, कभी मस्त हैं, कभी तख्ल हैं,
जब हर लम्हां एक ग़ज़ल हो, मै न कहूँ, ये खता न हो।

कभी हाथों में हाथ हम चले, कभी उम्र भर के फासले,
पर मिलने के वो सिलसिले, उफ़! न करूँ, ये खता न हो।

कभी "बेसबब" तकरार हो, कभी हर अदा में प्यार हो,
अहसास के किसी रंग को, मै न जियूं, ये खता न हो।

२५ फरवरी २००३
Chicago, IL, USA