देख ले ऊषा तिमिर को बेध कर है मुस्कराती

देख ले ऊषा तिमिर को बेध कर है मुस्कराती।

रात भर पग-भार ढोता
मंद-मंथर बढ़ रहा था।
लक्ष्य क्या, किस ओर चलना,
सोच मन में कुढ़ रहा था।

भटकता इस ओर से उस
छोर तक था ढूँढता नयमार्ग-दर्शक, नीति, जीवन जीने का ढंग,
तम सघन में नयन मुँद-खुल
तौलते थे जय-पराजय।

आँख की लाली छिटक अब प्रात के नभ को सजाती।
देख ले ऊषा तिमिर को बेध कर है मुस्कराती॥

छल रहे थे स्वप्न युग से
स्वर्ण-मृग-मारीच हो ज्यों,
जानकर भी भागता था
क्या कहूँ पीछे भला क्यों।

मोहते थे दूर से पर
हाथ में मेरे न आते,
बुदबुदे पानी के जैसे
सतह पर आ फूट जाते।

याद उनकी तारकों सी दूर नभ में टिमटिमाती।
देख ले ऊषा तिमिर को बेध कर है मुस्कराती॥

२६ मार्च २०१७
बंगलौर