शरद पूर्णिमा

आज आश्विन मास की पूर्णिमा, यानी कि शरद पूर्णिमा है। भारतीय ऋतु गणना के अनुसार भाद्रपद या भादौं को वर्षा ऋतु का समापन और आश्विन को शरद ऋतु का आरंभ माना जाता है। तो शरद पूर्णिमा होती है शरद ऋतु के बीचों बीच। कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है और माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं। मुझे याद है कि जब मैं छोटा था तो आज की रात खीर या रबड़ी बना कर बाहर छत पर थोड़े समय के लिए रख दिया जाता था, कि रात में जब चंद्रमा अमृत की वर्षा करेगा तो थोड़ा खीर में भी गिरेगा, और वह खीर अगले दिन खाई जाती थी। ये बात और है कि वैसा अमृत सालों खा कर न कोई अमर हुआ, और न ही हर घर में लक्ष्मी ही आईं।

उत्तर भारत में छः ऋतुएँ होती हैं: वसंत (चैत्र/चैत - वैशाख/बैसाख, mid Feb - March), ग्रीष्म (ज्येष्ठ/जेठ-आषाढ़ Apr-May-June), वर्षा (श्रावण/सावन-भाद्रपद/भादों July-Aug), शरद (आश्विन/कुमार/क्वार-कार्तिक Sep - mid Oct), हेमंत (मार्गशीर्ष/अगहन-पौष/पूस Oct-Nov), शिशिर (माघ-फाल्गुन/फागुन Dec-Jan-mid Feb)। वैसे सारी ऋतुएँ दो-दो महीने की नहीं होती हैं। जैसे कि माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को वसंत पंचमी का पर्व होता है और इसे वसंत ऋतु का आरंभ मानते हैं, और फाल्गुन पूर्णिमा को मनाई जाने वाली होली वसंत ऋतु का प्रमुख त्यौहार है, तो फाल्गुन में शिशिर नहीं वसंत होता है। और गर्मी बैसाख से ही पड़नी शुरू हो जाती है।

एक मजे की बात यह है कि शरद ऋतु को Autumn (यानि कि पतझड़) कहा जाने लगा है, wikipedia में भी! इस समय विश्व के पश्चिमी हिस्से में पतझड़ भले ही हो, भारत में तो वर्षा के बाद इस समय प्रकृति हरी-भरी शस्य-श्यामला होती है। मौसम मन-भवन होता है और आसमान साफ, बस थोड़ी ठंडी होने लगती है। पतझड़ आता है वसंत के पहले, यानी शिशिर ऋतु में, जब प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है, वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं और चारों ओर कुहरा छाया रहता है।

इस बुढ़ापे से याद आया कि तुलसीदास जी की राम चरित मानस में शरद ऋतु पर लिखी प्रसिद्ध चौपाई:

बरषा बिगत सरद ऋतु आई।
लछिमन देखहु परम सुहाई॥
फूलें कास सकल महि छाई।
जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥

अर्थ है: लक्ष्मण देखो वर्षा विगत हुई, अर्थात बीत गयी और सुहानी शरद ऋतु आ गयी। काँस (कुश, Talahib grass) के सफेद फूल महि (पृथ्वी) पर छा गए हैं, जैसे कि वर्षा ने अपने बुढ़ापे के सफेद बाल प्रकट किये हों।

तो चलिए भाई, खीर-वीर बनाइए, और शरद पूर्णिमा में चंद्रमा से बरसते अमृत का आनंद लीजिए। इस अवसर पर एक कुंडलिया जैसा (कुंडलिया होने के लिए इसे शरद पर ही ख़तम होना था) कुछ लिखा है:

शरद पूर्णिमा शशि कहें, वर्षा गयी है बीत।
कल कंबल को धूप दे, आने को अब शीत॥
आने को अब शीत, दिवस होवेंगे छोटे।
करोगे सब थर-थर, स्वेटर चढ़ा के मोटे॥
पानी ठंडा देख, नहाना हुआ नदारद।
कैसा होगा शिशिर, सोच में पड़े विशारद॥

शुभकामनाएँ!