बीन आ छेड़ूँ तुझे... - हरिवंशराय बच्चन

बीन, आ छेड़ूँ तुझे, मन में उदासी छा रही है।

लग रहा जैसे कि मुझसे
है सकल संसार रूठा,
लग रहा जैसे कि सबकी
प्रीति झूठी, प्यार झूठा,
और मुझ-सा दीन, मुझ-सा
हीन कोई भी नहीं है,
बीन, आ छेड़ूँ तुझे, मन में उदासी छा रही है।

दोष, दूषण, दाग अपने
देखने जब से लगा हूँ,
जानता हूँ मैं किसी का
हो नहीं सकता सगा हूँ,
और कोई क्यों बने मेरा,
करे परवाह मेरी,
तू मुझे क्या सोच अपनाती रही, अपना रही है?
बीन, आ छेड़ूँ तुझे, मन में उदासी छा रही है।

हो अगर कोई न सुनने
को, न अपने आप गाऊँ?
पुण्य की मुझमें कमी है,
तो न अपने पाप गाऊँ?
और गाया पाप ही तो
पुण्य का पहला चरण है,
मौन जगती किन कलंकों को छिपाती आ रही है।
बीन, आ छेड़ूँ तुझे, मन में उदासी छा रही है।

था तुझे छूना कि तूने
भर दिया झंकार से घर,
और मेरी साँस को भी
सात स्वर के लग चले पर,
अब अवनि छू लूँ, गगन छू लूँ
कि सातों स्वर्ग छू लूँ,
सब सरल मुझको कि जो तू साथ मेरे गा रही है।
बीन, आ छेड़ूँ तुझे, मन में उदासी छा रही है।

-- हरिवंशराय बच्चन