सागर - कुण्डलिया

सागर गहन अथाह है, सकल जगत विख्यात।
उससे अनुभव-ज्ञान लो, सुगम रहें दिन रात॥
सुगम रहें दिन रात, गुनो यह कथ्य न भूलो।
गतिमय सदा तरंग, गूढ़ यह तथ्य न भूलो॥
उठ-गिर थके कभी न, करे ये लहर उजागर।
मन जो बसी उमंग, बसा गागर में सागर॥

३ मई २०१४
बंगलौर