मैं तो खुली किताब हूँ

[ उन्हें मेरी नज़रों से कोई देखे तो मर जाये
अब आप ही कहिये कि दिल किधर जाये ]

मैं तो खुली किताब हूँ, तू भी पढ़ जो आये दिल,
दो-चार शेर तू भी लिख, तू भी कह जो चाहे दिल।

कुछ इस कदर अज़ीज़ हैं, दिल के बहुत करीब हैं,
कभी प्यार से बस देख लें, और क्या ये चाहे दिल?

अहसास चुप न रह सके, बेबाक हो कर कह गये,
बेसब्र दिल धड़क रहा, न जाने क्या ये पाये दिल?

हमें फक्र था कि हम भी हैं, कुफ्र था कि हम ही हैं,
वो हम न थे कोई और था, अब कहाँ ये जाये दिल?

न दिन में आफताब है, न रात में माहताब है,
थकी शमां भी बुझ गयी तो क्यों न खार खाये दिल?

जाने हम क्या कर गये, अरमान दिल में मर गये,
वो मिलें, और न मिलें तो क्यों न टूट जाये दिल?

वक्त का मरहम लगा, दिल का घाव भर गया,
फिर हुये हम आशना, फिर मल्हार गाये दिल।

अजी कई तजुर्बे हो चले, पर हैं फिर भी मनचले,
हुस्न की हर इक अदा पे "बेसबब" उकसाये दिल।

१४ फरवरी २०१४
बंगलौर