मानव की आराध्य देव को चुनौती

हे रूद्र! मैं नहीं हारूँगा!

तेरे आघात भले हों निर्मम,
मैं छिन्न-भिन्न हो गिर जाऊँ।
तेरे अजेय बल-विक्रम से
पर क्या मैं यूँ डर जाऊँ?
मानव शोणित का ताप अतुल, फिर उठ-उठ यही पुकारूँगा --
हे रूद्र! मैं नहीं हारूँगा!

चाहे कितने ही व्यवधान रचो,
पर रोक मुझे न पाओगे।
मैं मर्त्य और तुम अजर-अमर,
पर जीत कभी न पाओगे।
तुम प्राण भले मेरे ले लो, पर जीवित यूं ललकारुंगा --
हे रूद्र! मैं नहीं हारूँगा!

तेरे त्रिशूल का भय नहीं मुझे,
डमरू की डम–डम हुयी व्यर्थ।
हे त्रिनेत्र! हे प्रलयंकर! सुनो,
अब तांडव का खो गया अर्थ।
विध्वंशों के अवशेषों पर, मैं सॄजन रूप फिर धारुंगा!
हे रूद्र! मैं नहीं हारूँगा!

मैं अनुगामी तेरा ही तो हूं,
फिर बोलो कैसे हार सहूँ?
दु:ख, दारूण को मैं शीश नवा,
क्या तुझको लज्जित कर दूँ?
मानव की जय का वर दो, मैं तन-मन तुझ पर वारुंगा!
हे रूद्र! मैं नहीं हारूँगा!

३० दिसंबर २००२
Chicago, IL, USA